लाइब्रेरी में हवस की पूजा

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लाइब्रेरी में हवस की पूजा

नमस्ते दोस्तों! मेरा नाम रुपाली है। में इक्कीस साल की लड़कीं हूँ। मुझे बस मेरे किताबों से प्यार है, ऐसा सबको लगता है। मगर सच्चाई ये है कि मुझे सिर्फ सेक्स वाली किताबे पढ़ने का शौख है। जी हाँ! हमेशा से ही मेरा अधिक समय किताबों के बीच गुजरता और इसी वजह से सबको लगता कि में एक सुशील, शांत लड़कीं हूँ मगर हकिगत में मैं एक हवस की पुजारन हूँ।

हमारी गली में एक बड़ी लाइब्रेरी थी। में खाली समय मे यही जाती थी। मेरे कॉलेज में सब लोग मुझे किताबी कीड़ा बुलाते थे और मेरे ज्यादा दोस्त भी नही थे। कभी कभी मुझे तन्हाई महसूस होती थी। मगर फिर में अपनी किताबी दुनिया मे खो जाती और मास्टरबेट भी करती। खुद को सहलाने से में अपने सारे ग़म भूल जाती।

मेने एक दो बार अपनी सहेलियों से छुपा कर उनके बोयफ़्रेंडस से अपनी चुदाई करवाई है। मगर आज तक ये भी एक राज ही है। एक बार में क्लास में पीछे वाली बेंच पर बैठ कर एक किताब पढ़ रही थी। उस दिन हमारे क्लास में एक नया लड़का आया था। लेक्चर के बाद वो पीछे आया। मेरी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए मेरे बगल में बैठ गया।

में फिर पढ़ने में व्यस्त हो गयी। उसने कहा “तुम्हारा नाम क्या है?” मेने कहा “रुपाली”। थोड़ी देर बाद उसने कहा “तुम सच मे बहुत सुंदर हो, इसी लिए तुम्हारा नाम रुपाली रखा है…” में बस मुस्कुराई, मुझे नए लोगों से दोस्ती करने में काफी दिक्कत होती है। उसने फिर बात करने की कोशिश की। “तो तुम्हे किताबे पढ़ना पसंद है…दोस्ती करनी भी पसंद है क्या?” मुझे वो अच्छा लगा, मे मुस्काई। फिर हम दोनों ने हाथ मिलाये। उसने उसका नाम विशाल बताया।

फिर घर जाने पर मैने कपड़े बदले औऱ तुरंत लाइब्रेरी चली गयी। लाइब्रेरी का सबसे पीछे वाला कोना पकड़ा और किताब खोल के बैठ गयी। मुझे खयाल आया कि ये विशाल ने आज आके मुझसे ही क्यूं बाते की, और भी तो लोग थे वहा पर। पता नही! मगर लड़का काफी हैंडसम है…मेने सोचा। में फिर किताब पढ़ने लगी। मेरी हवस जागने लगी थी। मुझे मेरे घर से ज्यादा प्राइवेसी यहा पर मिलती थी।

आज लाइब्रेरी में ज्यादा लोग नही थे। मेने अपनी एक टांग आगे टेबल पर रखी और अपनी जीन्स में हाथ डाल दिया। जीन्स काफी टाइट थी इस लिए हाथ को दिक्कत हो रही थी। मेने अपनी पैंट घुटनों तक उतारी और फिर कुर्सी पर बैठ गयी। ठंडी कुर्सी का स्पर्श मेरी गांड को हुआ तो मेरी चुत और मचलने लगी। मेने अपना हाथ पैंटी के अंदर डाला और अपनी चुत को सहलाने लगी। कुछ ही देर में मुझे चरम सुख प्राप्त हुआ। मुझे हमेशा से ही लगता था की किसी लड़के से बेहतर तो में खुद ही अपने आप को संतुष्ट कर पाती हूँ!

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कुछ देर बाद मेंने अपने कपड़े ठीक कर लिए। वहा की लाइब्रेरियन से मेरी अछि दोस्ती थी। थोड़ी देर उससे बात की और घर चली आयी। मेने घर के कपड़े पहन लिए और अपने बेड पर बैठ गयी। मेने अपना मोबाइल खोला और देखने लगी। तभी मुझे इंस्टाग्राम पर विशाल कि फ्रेंड रिक्वेस्ट आयी। मेने उसका प्रोफाइल देखा तो उसके कई फ़ोटो थे। एक फोटो में वो एक स्विमिंग पूल में शर्टलेस बेठा हुआ था। मुझे ये फोटो बहुत अच्छा लगा। मेने रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली।

रात को उसका मैसेज आया “हाई। आज हम कॉलेज में मीले थे। याद है?” मेने रिप्लाई कर दिया “हाँ!” उसका फिर मैसेज आया “में भी किताबे पढ़ना चाहता हूँ। लेकिन मुझसे एक जगह बेठा नही जाता। और में किताब पूरी नही कर पाता। तुम कैसे पढ़ लेती हो?” मेने कहा “सही किताब मिल जाये तो कोई भी पूरी पढ़ सकता है।” उसने कहा “हाँ शायद। हम कही साथ बैठ के पढ़ सकते है क्या? अगर तुम्हें कोई ऐतराज ना हो तो…”

इस सवाल ने मुझे सोच में डाल दिया। में और विशाल आज पहली बार मिले, फिर भी ये मुझसे दोस्ती क्यूं करना चाहता है। मेने उसे बोला “ठीक है ना! कल कॉलेज को छुट्टी है। हमारे गली में जो लाइब्रेरी है, वहा आ सकते हो तुम?” उसने कहा “ठीक है! 3 बजे आता हूँ…”

अब कल का तो तय हो गया था मगर नजाने क्यूं जरा बैचैनी हो रही थी। सोचते सोचते में सो गई। दूसरे दिन में सुबह ही लाइब्रेरी में चली गयी। लाइब्रेरियन ने पूछा “क्या बात है रुपाली, आज इतनी जल्दी आ गयी?” मेने कहा “हाँ, वो आज छुट्टी थी और कुछ काम भी नही था इसलिए।” और फिर में वापस अपने कोने में जाके बैठ गयी। और मेने तय कर लिया था कि विशाल के सामने मैं अपना मूड चुदासी नही होने दूंगी। इसलिए मैंने आज सेक्स वाली किताब भी नही पढ़ी और मास्टरबेट भी नही किया।

दो बज गए थे। तभी लाइब्रेरियन आयी और बोली “आज लाइब्रेरी जल्दी बन्द कर रही हूँ, मुझे जरा बाहर जाना है” तो मैने जल्दी कोई जवाब नही दिया। तो उसने फिर मुझे लाइब्रेरी की चाबी थमा दी और बोली “रुकना चाहती हो तो रुको, जारे वक्त ताला लगा देना” मेने मुस्काकर चाबी लेली। धीरे धीरे बाकी सब लोग चले गए। तो मेने दरवाजा बंद कर दिया। तीन बजने को आये थे।

थोड़ी देर में विशाल का मैसेज आया, वो नीचे खड़ा था। मेने दरवाजा खोला और उसे अंदर ले आयी। पूरी लाइब्रेरी खाली थी। सिर्फ में और विशाल थे। उसने पूछा “पूरी लाइब्रेरी में सिर्फ हम दोनों…आखिर प्लान क्या है तुम्हारा?” मेने कहा “हाँ। तुम्हारे आने की खबर सुनकर बाकी सब भाग गए।” ये सुनकर वो हँसा। फिर उसने अपने लिए एक किताब उठायी और हम पढ़ने बैठ गए।

मुझसे रहा नही गया तो मैने पूछ लिया “सुनो, कल तुमने आके मुझी से बात क्यूं की?” वो थोड़ी देर चुप ही रहा। फिर बोला “ये देखने के लिए की तुम मुझे पहचानती हो की नही।” मेने चौंककर पूछा “क्या मतलब?!” तो उसने सब बताया। कि कैसे वो और में दसवीं में एक ही ट्यूशन में जाते थे। फिर उसने मेरा हाथ अपने हाथ मे ले लिया और बोला “रुपाली में तुम्हे तबसे चाहता हूँ। तुमने कभी मुझपर ध्यान ही नही दिया। ये किताब वगेरा बस बहाना था, तुम्हारे करीब आने का…”

ये सुनकर मेरे होश उड़ गए थे। ये प्यार व्यार के चक्कर मे में कभी पड़ी ही नही थी। मगर मुझे उसकी बातें सुनकर अच्छा भी लग रहा था। वो मेरी उंगलियों को अपने अंगूठे से सेहला रहा था। में कुछ सोच नही पा रही थी। मेंने अपना हाथ खींच लिया और एकदम से खड़ी हो गयी। वो बेठा रहा और में तेजी से दरवाजे की ओर चलने लगी। वो पीछे पीछे आने लगा। मुझे रुकने के लिए बोल रहा था। उसने मेरा हाथ पकड़ कर रोका। तो में मूड गयी और उसके करीब जाकर उसके होठों पर किस कर लिया।

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उसने चौंक कर अपनी आँखें बड़ी कर ली थी। और फिर उसने आँखे बंद कर ली और हम दोनों बहुत देर किस करते रहे। जो नही होना था वो होने लगा। मेरी चुत मचलने लगी थी। में कुछ भी सोचने के हालत में नही थी। में उसके शर्ट में अपना एक हाथ डाल दिया। वो पीछे हट गया और सोचने लगा। में फिर करीब गयी और उसके बटन खोलने लगी। फिर वो भी जोश में आगया। उसने अपनी शर्ट उतार दी और मुझे उठा लिया।

उसने मुझे टेबल पर बिठाया और हम फिर किस करने लगे। में उसकी पीठ से हाथ घुमाने लगी। और वो मेरी टीशर्ट में हाथ डालने लगा। मेने तुरन्त अपनी टी शर्ट खुद उतार दी। उसने पूछा “जितनी दिखती हो उतनी शर्मीली नही हो तुम!” मेने कहा “तो तुम्हे क्या लगता है, में दिन भर जोतिष विद्या पढ़ती हूँ?” वो हँसा। फिर मेरी आँखों मे देखते देखते उसने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया। मेने अब सिर्फ नीचे स्कर्ट और अंदर पैंटी पहनी हुई थी। मेरी चुत गीली होने लगी थी।

मेरी चुचियों को देख कर वो बोला “रुपा…रूपा…” और फिर वो मेरी चुचियों को चूमने लगा। मेने उसके बालों में हाथ डाले और अपनी आँखें बंद कर ली। कुछ देर बाद मेरा ध्यान गया कि हमारे पीछे वाली खिड़की खुली थी। तो मैने विशाल को रोका। और टेबल पर बैठे बैठे ही पीछे मुड़ कर खिड़की बन्द करने लगी। तभी विशाल ने पीछे से खींच कर मेरी स्कर्ट उतार दी।

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मेने जैसे तैसे खिड़की बंद कर दी। में टेबल से उतर कर खड़ी हो गई। अपने बाल खोल कर मेने अपनी चुचियों पर फैला दिए और कमर पर हाथ रख कर खड़ी हो गयी। उसने आके एकदम मुझे दबोच ही लिया। मुझे पकड़ कर मेरी गर्दन पर चुमने लगा। उसने मुझे पीछे की ओर झुकाया और हर जगह चूमने लगा। गर्दन दे लेकर चुचियों तक फिर नीचे पेट पर भी। उसने नीचे बैठ कर मुझे कमर पर पकड़ा और मेरे पैंटी पर चूमा। मेरी चुत अब प्यासी हो रही थी।

उसने अपने दांत से मेरी पैंटी का एक कोना पकड़ा और नीचे खींचा। उसने मेरी ओर देखा तो में अपनी चुचियाँ सेहला रही थी। उसने फिर दोनों हाथों से मेरी पैंटी पूरी उतार दी। शर्म से मैने दोनों घुटने जोड़ लिए। मेरी गांड पर हाथ रख कर उसने दोनो हाथ से मुझे उठा लिया और फिरसे टेबल पर लिटा दिया। में उसके सामने पूरी नंगी थी। उसने अपनी जीन्स खुद उतार दी। मेरे सामने वो कुर्सी पर बैठ गया। मेने अपनी दोनों टांगे फैला दी।

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मेरी जांघों को अपने हाथ से दबोच कर उसने मेरी चुत के चाटना शुरू किया। मुझे बहुत मजा आ रहा था। वो मेरी चुत को खाये जा रहा था और मेरी सिसकियाँ निकलने लगी थी…

ओहहहहहहहहहहहहहहहहह…

सससीईईईईईईसससीईईईईईई….. आहहहहहहहहहहहहहहहहह…… ओह विशु….

विशुउउउउ…उममहःहहहहहहहहहहहहहहहह….सससीईईईईईईसससीईईईईईई….. ओहहहहहहहहहहहहहहहहह…. उममहःहहहहहहहहहहहहहहहह…

मेरी चुत अब मेरे बस में नही थी। मेने बोला “विशु…तु…तुम्हे पता है ब्लो-जॉब को हिंदी में क्या कहते है?” उसने अपना मुह मेरी चुत से हटाया और पूछा “क्या?” मेने बताया “मुख – मैथुन….” और हम दोनों हस पड़े। उसने पूछा “तो ये सब पढ़ती रहती हो तुम हमेशा?” में उठ के बैठी औऱ बोला “वैसे…तुम चाहो तो डेमो भी दे सकती हूँ…” मेने उसकि अंडरपैंट पर अपना हाथ रगड़ना शुरू किया। उसने अपना लन्ड पैंट से निकला और मेरे हावले किया। मेने उसके लंड को अपने हाथ से थोड़ा हिलाया। और फिर मुह में ले लिया। धीरे धीरे उसका समूचा लंड मेरे मुह के अंदर समा गया। उसकी आहे निकल रही थी

सससीईईईईईईसससीईईईईईई….. ओहहहहहहहहहहहहहहहहह…. उममहःहहहहहहहहहहहहहहहह…

ओहहहहहहहहहहहहहहहहह…

उसका बड़ा लन्ड देख कर मेरी हवस बढ़ती जा रही थी। मेने कुछ और देर उसे ब्लोजॉब दिया और फिर रुक गयी। में अब सेक्स के लिए और नही रुक सकती थी। हमारा फोरप्ले बहुत लंबा चला था। अब थी विशाल की इम्तेहान की घड़ी। क्या वो मेरी किताबी फैंटसीज पूरी कर पाएगा?!

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मेने अपनी कमर उसके लंड तक उठायी और उसका लंड को अपनी चुत पर रगड़ना चालू किया। वो मेरी दोनो टांगो के बीच खड़ा हो गया और एक ही शॉट में उसका लन्ड मेरी चुत के अंदर डाल के मुझे तारे दिखा दिये! उसने मुझे खूब चोदा और मेरी सारी हवस को आज शांत किया। मुझे चरम सुख तुरंत प्राप्त हुआ। मुझे मालूम था पूरे लाइब्रेरी में कोई नही था…मेने जी भर के अपनी चुदाई करवाई। मेरी जोरदार आवाजे सुनने के लिए वहा पर सिर्फ विशाल था।

ओहहहहहहहहहहहहहहहहह…

सससीईईईईईईसससीईईईईईई….. आहहहहहहहहहहहहहहहहह……

विशुउउउउउ…उममहःहहहहहहहहहहहहहहहह….सससीईईईईईईसससीईईईईईई….. ओहहहहहहहहहहहहहहहहह…. उममहःहहहहहहहहहहहहहहहह… आहहहहहहहहहहहहहहहहह…ओहहहहहहह हहहहहहह…… आह हहहहहहहहहहहहह….. विशु चोदो मेरी चुत।… आआआहहहहहहह और जोर से..जोर से ओह मेरे हीरो आआआहहहहहहह

अगले 1 घंटे तक विशाल ने मुझे अलग अलग पोजीशन में खूब चोदा। मुझे एकदम संतुष्ट कर दिया। विशाल आज भी मेरा बॉयफ्रेंड है। हम दोनों एक दूसरे के पक्के साथी बन गए है। उसने मेरी तन्हाई भी मिटाई और हमेशा मेरी चुत की प्यास भी बुझाता है। और में तो उसके बचपन का प्यार हूँ, तो मुझे पा कर बहुत ही खुश है…

हम हर बार अलग जगह पर संभोग करते है। साथ मे हवस की किताबें पढ़ते है। और कभी कभी लाइब्रेरी में हवस की पूजा भी करते है…पहले दिन की तरह।

तो एक थी दोस्तों मेरी लाइब्रेरी वाली कहानी। अगर ये कहानी पढ़ कर आपको मजा आया तो लाइक और कमेंट जरूर करे।

ऐसी कयामत भरी चुदास कहानी पढ़ने के लिए https://nightqueenstories.com पर बने रहना। हम आपको पूरा यकीन दिलाते हैं आपकी पसंद की हर कहानियां लेकर आएंगे। और चुत औऱ लन्ड की गर्मी शांत करते रहेंगे। धन्यवाद।

मेरी अगली कहानी का शीर्षक है “हवस की जीत“|

नमस्कार।

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One thought on “लाइब्रेरी में हवस की पूजा

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