सुबह की सैर सेक्स के साथ

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सेक्सफुल मार्निंगवाक

मोहल्ले की गली सूनसान थी, सुबह के 3:30 बजे हुए थे, हल्का उजाला था। रश्मि टी-शर्ट, शार्ट्स और जूते पहने हुए स्टेडियम की ओर जा रही थी। आज वह स्टेडियम रोज की तरह दौड़ने के लिए नहीं, बल्कि विवेक से मिलने जा रही थी। विवेक वही लड़का है जो रोज सुबह उसी टाइम पर दौड़ने आता है जब रश्मि आती थी। दोनों की दोस्ती हुई और फिर प्यार हो गया।

वैसे रश्मि जब दौड़ती है तो उसकी लचकती पतली कमर वहाँ स्टेडियम के सभी लड़को और बुड्ढों की अंडरवियर टाइट करा देती है। उसका 36 – 32 – 36 का फिगर उसके लिए परेशानी का कारण बन गया था। आये दिन लड़के उसे प्रपोज करते थे और उसके आगे पीछे चक्कर लगाते रहते थे। धीरे धीरे वह इन सब चीजों की आदि हो चुकी थी।

तो, विवेक से प्यार होने के बाद दोनों की बातें होती थी, अब वह प्यार से एक कदम आगे बढ़ना चाहते थे और सेक्स करना चाहते थे। सेक्स की इच्छा सबसे पहले विवेक ने जाहिर की थी। दोनो को मिलते हुए लगभग छह महीने हो चुके थे, पर आज तक एक किस भी नही हो पाया था, क्योंकि वो स्टेडियम में ही मिल पाते थे और वहाँ सुबह 4 बजे से ही भीड़ होने लगती है, सभी बुड्डे जवान वहाँ खुद को स्वस्थ रखने के लिए आते हैं।

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अब, रश्मि को चोदने के लिए विवेक ने उसे मना तो लिया, पर वह उसे चोदेगा कहाँ, यह काफी विकट समस्या थी। वह अभी कमाई नहीं करता था तो होटल लेना आदि उसके वश की बात नही थी, और इन सब कामों के लिए जल्दी कोई होटल देता भी नही है।

इस समस्या का हल रश्मि ने निकाला था, उसने विवेक से फोन पर बताया कि अगर तुम्हे मुझको चोदना ही है तो स्टेडियम की पीछे से जो रेलवे लाइन जाती है, उसके उस पार कोई नही आता जाता है। वहाँ सिर्फ पेड़ ही पेड़ हैं, वहाँ पर चल कर मैं चुदवा सकती हूँ। बाकि अगर केवल चूचियाँ दबानी हो तो शाम को मैदान पर आ जाना। रश्मि पुलिस की तैयारी कर रही है, वह खुले दिमाग की लड़की है और गाली गलौज भी खूब करती है। इतने साल हो गये पर आजतक मजाल है कि किसी लड़के ने उसके साथ बदत्तमीजी की हो। वो तो अब रश्मि की ही गर्मी है जो उसे विवेक के साथ चुदने का प्लान बनाना पड़ रहा है।

अंधरी गलियों में चलते हुए वह घबरा भी रही थी, मानो वह कहीं चोरी करने जा रही हो। उसने एक पिट्ठू बैग भी टांगा था जिसमें चटाई और पानी की बोतल थी। उसने तो एक रात पहले यह भी सोचा था कि कंडोम ले लूँ, फिर उसने सोचा, अब विवेक इतना तो समझदार होगा ही कि कंडोम लेकर आयेगा। ये सब विचार करते हुए, वह लम्बे लम्बे कदमों से स्टेडियम की ओर बढ़ रही थी।

थोड़ी देर में ही, स्टेडियम आ गया था। उसने जब ध्यान से पूरा स्टेडियम देखा तो उसकी जान में जान आयी, क्योंकि अभी स्टेडियम कोई भी नही आया था। वह दौड़कर स्टेडियम में प्रवेश करती है और सीधे पीछे की ओर सबसे आखिर में खड़ी हो जाती है। जहाँ से रेलवे लाइन के ओर जाने का रास्ता है, उसने विवेक को वहीं पर आने के लिए बोल रखा था।

4 मिनट ही हुए थी कि विवेक भी साइकिल से स्टेडियम में प्रवेश करता है, वह रोज की तरह टीशर्ट, शार्ट्स और शूज पहन कर आया था। उसने साइकिल गेट से काफी दूर खड़ी की और दौड़ते हुए रश्मि के पास पहुँच गया। स्टेडियम में सन्नाटा था, विवेक ने आते ही रश्मि का बालो का जूडा पकड़कर एक जोरदार किस करते हुए हैलो बोला। रश्मि ने कहा, तुम लेट हो, चलो जल्दी चलो, कहीं कोई आ न जाए।

विवेक बिना कुछ बोले रश्मि के पीछे चल दिया और कुछ दूर जाकर रेलवे लाइन पार कर वह जंगल में पहुँच गये। अब रश्मि ने बैग से चटाई निकाली और जमीन पर बिछा दी और पानी की बोतल निकाल कर वही साइड में रख दी। विवेक हैरान था, उसने सोचा ये तो पूरी तैयारी से आयी है। अब दोनो वही खड़े थे, दोनो का पहली बार का सेक्स था तो किसी को कुछ समझ नही आ रहा था कि शुरूआत कैसे की जाये और कौन करे। रश्मि ने कुछ बात शुरू की, विवेक ने जवाब नही दिया और उसके बिल्कुल नजदीक आकर खड़ा हो गया। दोनो के होठ करीब आने लगे और धीरे धीरे चुम्बन शूरू हुआ। विवेक ने रश्मि के गालों पर अपने दोनो हाथ रखे और जोर से किसिंग करने लगा। वह किस के साथ ही साथ अपना शरीर रश्मि के शरीर से रगड़ रहा था।

फिर उसने रश्मि की टीशर्ट में एक हाथ डाला औऱ उसके मम्मे दबाने लगा। रश्मि को अब मजा आना शुरू हुआ था। वह हवा में धीरे धीरे लहरा रही थी जैसे बिल्कुल हल्के हल्के डांस हो रहा हो। रश्मि ने विवेक का दूसरा हाथ पकड़ा और अपनी टीशर्ट के नीचे से ले जाते हुए उसे दूसरा चूचा पकड़ा दिया। अब विवके रश्मि के दोनो चूचे दबा रहा था एक टीशर्ट के ऊपर से हाथ डालकर और एक टीशर्ट के नीचे से हाथ डालकर। रश्मि अब जोर जोर से हवा मे लहरा रही थी, विवेक ने मौके की नजाकत को देखते हुए, उसे जमीन पर पड़ी चटाई पर लिटा दिया। और उसके ऊपर खुद भी लेट गया। यह पहला मौका था जब रश्मि किसी मर्द के नीचे टांगे खोलकर लेटी थी। विवेक उसकी टांगो के बीच अपना हाथ ले गया और उसकी चूत पर बाहर से ही हाथ सहलाने लगा। रश्मि को मजे आ रहे थे वह अपना सिर एक बार दायें ले जाती फिर एक बार बाये ले जाती और अपनी जीभ से होठों को चाट रही थी। उसे बढ़ा मजा आ रहा था।

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कुछ देर की रगड़ घिस के बाद विवेक ने उसका शार्ट्स और अंडरवियर उतार दिया। उसकी नजर रश्मि की चूत पर गयी तो वह दंग रह गया। गुलाबी रंग की चूत की दो फलको के आसपास झांट का एक बाल भी नही था। वह झांटे बनाकर आयी थी, उसकी चिकनी चूत देखकर विवेक से रहा नही गया और उसने रश्मि की चूत को चूमा और चूसना शुरू कर दिया। रश्मि तो जैसा बैला रही थी, वह अपने दोनो हाथ अपने सिर पर ऱखकर अपना सिर दायें बायें कर छटपटा रही थी। उसकी चीख निकलने को थी, पर वह चीख नही सकती थी।

अभी 3:50 की लोकल ट्रेन का वक्त हो गया था, और ट्रेन आ भी रही थी। ट्रेन के करीब आने से पहले ही विवेक और रश्मि अपने आप को सही करते हुए सारे कपड़े पहन कर अलग अलग खड़े हो जाते हैं। ट्रेन पास की पटरियो से खड़ खड़ाते हुए निकलती है। कुछ सवारिया उन्हे देखती भी है, पर क्या कर सकती है, ट्रेन निकल जाती है।

अब विवेक को एहसास होता है कि उनके पास ज्यादा समय नही है। वह रश्मि के पास जल्दी से जाता है और उसका चड्ढा उतार कर उसे फटाक से जमीन पर लिटा देता है। उसका मन उसे अपना लण्ड चुसाने को भी करता है पर वह उससे प्यार करता है और यह सब करना गलत समझता है तो वह सीधे अपना लण्ड निकालकर चूत पर रखता है। इसके बाद वह अपना लण्ड चूत के ऊपर ही कुछ देर रगड़ता है और देखता है कि रश्मि कैसे लण्ड लेने के लिए तड़प रही है। फिर रश्मि स्वंय ही उसका लण्ड पकड़ती है औऱ अंदर कर लेती है। अभी बस टोपा ही अंदर घुसा है और रश्मि जोर जोर से आहे भरने लगती है।

विवेक को समझ आ जाता है, वह ढेर सारा थूक निकालता है और चूत के ऊपर लगा देता है, फिर धीरे धीरे अपना लण्ड बाहर अंदर करता है और कुछ देर में पूरा लण्ड चूत में उतार देता है। इधर, रश्मि की साँसे बढ़ गयी है, वह जोर जोर से ऐसे सांस ले रही थी जैसे हँफ गयी हो। 1 मिनट बाद, विवेक अपने धक्कों की स्पीड बढ़ाता है और अपनी कमर गोल गोल घुमाकर चोदना शुरू करता है। चूत हल्की गीली हो गयी थी, और गीली पिच पर बैटिंग करने में आउट होने का खतरा ज्यादा रहता है। रश्मि मदहोश थी, परन्तु इसी बीच उसका दिमाग एक जरूरी बात पर गया और उसने विवेक से कहा, तुमने अभी तक कंडोम क्यों नही लगाया है। विवेक घबराया और बोला वो तो मैं लाया ही नही। अब रश्मि का गुस्सा तो जैसे सातवें आसमान में था, वो बोली कि मैं भी कितनी पागल हूँ कि इस जंगल में चटाई बिछाकर तेरा लण्ड चूत में डलवाये सुबह चार बजे लेटी हूँ औऱ तू हरामी एक कंडोम भी नही लाया। तेरी माँ ने कैसे चूतिये को जन्म दिया है कि उसमे रत्ती भर भी अक्ल नही है। रश्मि आगबबूला थी और गालियाँ बके जा रही थी, वह गालियाँ काफी समय से खुले आम देती आयी है, पुलिस में उसे जो जाना है।

रश्मि की बाते सुनकर विवेक को अपनी गलती का अहसास तो हुआ पर उसकी गालियाँ सुनकर उसे घुस्सा भी आ रहा था। औऱ इस गुस्से में उसके धक्के मालगाड़ी की स्पीड से बुलेट ट्रेन की स्पीड पर आ गये थे। वो बिना रूके रश्मि की चूत ऐसे चोदे जा रहा था जैसे उसे 5 किमी की रेस 18 मिनट मे मारनी हो। इधर, रश्मि का विवेक के जोरदार धक्को का झेलना मुश्किल हो रहा था साथ ही वह उसे गरिया के ये भी कह रही थी कि अगर तूने मेरे अंदर अपना माल छोड़ा तो तेरी गाँड फाड़ दूंगी।

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दोनो एथलीट थे तो उनमें स्टैमिना बहुत था जिसका फायदा वे इस चुदाई में भरपूर उठा रहे थे। विवेक ने अब रश्मि को उठा लिया था और खडा हो गया था। रश्मि ने विवेक की कमर में अपने दोनो पैर फंसा रखे थे। विवेक रश्मि को अपने सीने से चपकाये हुए ऊपर नीचे उछाल रहा था। वह अपनी बेजोड ताकत रश्मि को दिखा रहा था जिसका नतीजा ये था कि रश्मि अब पूरी तरह से चूप थी और आधी आँखे बंद कर मजे ले रही थी। कुछ देर बाद, विवेक उसे नीचे उतारता है और पेड़ के सहारे उल्टा खड़ा करता है। उसके पहाड़ जैसे गांड के गोले विवेक को चढाई करने के लिए बुला रहे थे। वह पीछे से रश्मि की चूत ढूढता है और लण्ड अंदर कर देता है। अब वह बड़े बड़े शाट मारने लगा है, मतलब पूरा लण्ड बाहर आता फिर पूरा लण्ड अंदर जाता था। चूत इतनी गीली थी कि लग रहा था जैसे जोरदार बारिश हुई हो और उसके बाद कीचड़ भरा हो। आठ से दस शाट बाद विवेक झड़ने वाला था पर वह रश्मि की गर्म चूत से अपना लण्ड बाहर नही निकालना चाहता था और हुआ भी वही वह सारा माल अंदर ही झाड़ देता है। रश्मि चुदाई में विवेक की मेहनत से काफी संतुष्ट थी, वह अब उसे कुछ नही कहती है। दोनो कपड़े पहनते हैं। रश्मि बैग में सामान भरकर बाहर आती है, शुक्र है अभी स्टेडियम में कोई आया नही है। वह बीच स्टेडियम मे जाकर लेट जाती है। विवेक स्टेडियम आता है औऱ साइकिल उठाकर घऱ चला जाता है।

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