सामूहिक और जंगली चुदाई का किस्सा
674
कबीले वालो की जंगली चुदाई – सामूहिक और जंगली चुदाई का किस्सा।
ये धनपुर नामक एक पाप की नगरी की अनोखी कहानी है , जयंती को पिछले चार दिनों से धनपुर के निवासियों ने कैदी बना रखा था। क्युकी जयंती बेहद खूबसूरत थी , उसे कबीले के सरदार के लिए बचाया जा रहा था। आज के दिन सरदार मंगल सिंह शिकार से दोबारा लोट रहा था और हवस की भूक चरम पर थी। जब सरदार कबीले में आया तो उसने अपने खास आदमी चरण को बुलाया , “चरण आज शहर की तरफ जाओ और किसी कमसिन हसीना को उठा लाओ , आज हमारा मन किसी मांसल औरत को चोदने का है। ”
“सरदार आपके लिए प्रबंद हो रखा है , बिलकुल वैसी, जैसी महिला की तलाप आपको है , हमने एक लड़की को बंदी बना रखा है। ”
“क्या ? शाबाश मेरे चीते ! अब जल्दी से एक काम करो , दाई माँ को उस लड़की से मिलवाओ। वह उसे तैयार करेगी और फिर मैं उसे आज ही चोदउंगा। ”
“जी बिलकुल सरदार। ”
चरण ने दाई माँ को सरदार का हुकुम सुनाया और दाई माँ जयंती के पास चली आइ। सबसे पहले तो उसने जयंती के बदन पर जो चीथड़े बचे हुए थे उन्हें पूरा हठा दिया और उसके गोर नंगे जिस्म को नंगा कर दिया। जयंती के हाथ और पैर बंधे गए थे और उसके मुँह में भी एक कपडा ठूसा गया था। बस आसु बहाने के अलावा उसके पास और कोई चारा नहीं था।
दाई माँ ने जयंती की बड़ी बड़ी चूचियों को दबाया और उसके गुलाबी रंग के निप्पल को सहलाया , वह ये देखना चाहती थी की क्या जयंती के मुम्मो में दूध था या नहीं। मंगल सिंह को स्तन से दूध पीना बहुत पसंद था। जयंती की चूचियों को अच्छे से टटोलने के बाद , दाई माँ ने उसकी चुत और गांड का मुआइना किया।
जयंती की गांड मस्त गोल मटोल थी और उसकी चुत काफी चिकनी थी , चुत को थोड़ा गरम करने के लिए दाई माँ ने सबसे पहले जयंती की चुत पर अपनी उंगलिया मसली , लेकिन चुत इतनी गीली नहीं हो रही थी। “घबरा रही है मुन्नी , बिलकुल दर मत। सरदार का लंड कबीले में सबसे बड़ा है और वह चुदाई भी ज़बरदस्त तरीके से करता है। तुजे बहुत ज़्यादा मज़ा आने वाला है। तेरी राहत के लिए में तुजे अंगूर का रस पीला देती हु। ”
पापी दाई माँ ने जयंती को अंगूर का रस पिलाया जिसकी वजह से जयंती हल्का हल्का होश खो रही थी , फिर दाई माँ ने चरण से संदेसा भिजवाकर सरदार को बुलाया। सरदार की नज़र जब जयंती पर पड़ी तो उसका लंड तुरंत ही खड़ा होगया , उसने दाई माँ से कहा , “ये लो अपना इनाम और अब जाओ। ”
“होल होल सरदार , लड़की की चुत को अच्छे से चाट कर पूरी तरह गिला करलो पहले। आपको और उसे भी पूरा मज़ा आएगा फिर। ”
जैसे दाई माँ ने बताया , सरदार ने जयंती की चुत को चाटना शुरू किया। उसकी गुलाबी चुत की महक और स्वाद दोनों काफी मीठा था। सरदार चुत की खुशबु से और ज़्यादा पागल हो रहा था। वह जयंती की चुत को अचे से खाने लगा। सरदार की जीब बिलकुल सही जगह पर छू रही थी और अब जयंती को अंगूर के रस से ज़्यादा नशा चुत चटाई से मिल रहा था।
जयंती की चिकनी चुत पूरी तरह से गीली होगई थी , अचानक जयंती की पेशाब निकल आई और उसने सरदार के चेहरे पर मूत दिया।
फिर दाई माँ ने जयंती को कबीले में बनने वाली शराब पिलाई और उसे नाशमई करा दिया।
इस बात से तो सरदार और भी ज़्यादा उत्तेजित होगया और खड़े होकर उसने जयंती के मुँह से कपडा निकाल दिया , और उसके होठो को चूमने लगा , “तुजे पता है सरदार पर मूतने की हिमत बस इस कबीले की रानी कर सकती है। क्युकी तूने ये हिमत दिखाई है , मैं तुजे इस कबीले की रानी बनाना चाहता हु। ”
जयंती का होश दोबारा लोट रहा था , “हम्म , मुझे लगा था की कोई कायर मुझे बंद कर चोदने वाला था। लेकिन तुजमे कुछ खास बात है जिस तरह से तूने मेरी चुत चाटी है… ”
इससे पहले की जयंती कुछ और कहती सरदार ने उसके हाथो को खोल दिया और उससे उठाकर अपने साथ अपनी झोपडी में ले गया। सारा कबीला ये देख रहा था क्युकी इसका मतलब था की जयंती अब सरदार की बीवी बन चुकी थी।
अंदर सरदार ने अपना लंड बहार निकाला और जयंती सरदार का लंड देख कर हैरान होगई , “ये क्या है ? तुम इंसान हो या गधे ?”
ज़बान संभाल अपनी , जब तेरी चुत के अंदर जायेगा ये तब तुजे पता चलेगा की असली मज़ा क्या होता है , फिर सरदार जयंती के पास गया और उसे झुकाकर घोड़ी बनाया। फिर जयंती की चुत को खोलकर सरदार ने अपना लंड अंदर डाला तो जयंती की चीख निकल आई , “आह ह…”
पर सरदार ने बिना कुछ कहे या रुके जयंती की चुत मारना शुरू करदिया , सरदार के झटको से जयंती के बड़े बड़े मुम्मे ज़ोर ज़ोर से हिल रहे थे। काफी ताबड़तोड़ तरीके से सरदार जयंती की चुदाई कर रहा था। एक और बार जयंती की चुत ने फुआरा छोड़ा और एक और बार जयंती की चुत का पानी सरदार के मुँह पर गिरा। “उफ़ , आह ह… ”
जयंती ने चुदाई का भरपूर मज़ा उठाया था , सरदार जब झड़ने वाला था तब उसने जयंती अपना लंड जयंती के मुँह में दिया और बोला , “चल अब चूस अचे से , में अपनी मलाई को तेरे मुँह में निकालूंगा। ”
सारि मलाई सरदार ने जयंती के मुँह में निकाल दी और उसका पूरा मुँह भर दिया। फिर अपने कपडे पहनकर सरदार झोपडी से बहार चला गया।
सरदार के जाते ही दाई माँ अंदर आई और जयंती से पूछा , “केसी रही बिटिया , सरदार ने खुश किया या नहीं ?”
“हम्म , बहुत ज़्यादा। ” शरमाते हुए जयंती ने कहा।
“आज तुम्हारे और सरदार के मिलान की ख़ुशी में सारा कबीला चुदाई करेगा। ”
“अच्छा ऐसी बात है ?”
“हाँ। ”
“तुम काहे इतना चहक रही हो ?” दाई माँ तो ताना मारते हुए जयंती ने कहा।
“तुम मुझे कम मत समझो बेटा , इस बुद्धि का मुँह जो मज़ा देता है ना तुम जैसी जवान लोंड़िया कभी नहीं दे सकती। ”
“अच्छा , मुझे भी राज़ बताओ ज़रा। ”
“हम्म , मेरे दांत नहीं है ना , इसीलिए चुसाई अच्छी होती है। ” दोनों हास् पड़ी दाई माँ की ये बात सुनकर।
फिर कुछ देर के विश्राम के बाद दाई माँ जयंती को तयार करके अपने साथ ले गई , वह एक तम्बू के अंदर घुसे जहा सारा कबीला जमा हो रखा था। जयंती बस दंग हो कर देख रही थी , क्युकी सारा कबीला ही चुदाई में मग्न था। दो और तीन , झुण्ड बनाकर औरत और मर्द चुदाई कर रहे थे। तब दाई माँ के पास चरण आया , “दाई , मेरा लंड चुसो। ”
“हाँ हाँ क्यों नहीं , चल खोल अपनी धोती। चरण ने अपना लंड बहार निकाला और दाई माँ के मुँह में दिया। बिना दातो की बुद्धिया का मुँह किसी गीली गरम चुत से कम नहीं था। “उम्म्म… ” करती हुई बुद्धिया चरण का लंड चुस्ती रही।
ऐसी सामूहिक चुदाई जयंती अपने जीवन में पहली बार देख रही थी , वह अब काफी गरम हो रही थी। जयंती की आखे सरदार को ढूंढने लगी लेकिन उसने कुछ अजीब सा नज़ारा देखा।
सरदार वहा दो कबीले वाली लडकियो के साथ लगा हुआ था। तब जयंती गुस्से से आग बबूला होगई और इससे पहले वह सरदार के पास जाती दाई माँ ने उससे रोका , “देख , कबीले में ये बात तो आम है , सभी एक दूसरे के साथ चुदाई करते ही है। ”
“ये केसा वेह्शीपन है ?”
“कोई वेह्शीपन नहीं , ये हमारी सदियों से चली आ रही परम्परा है। ” ऐसा कहकर दाई माँ ने जयंती के कपडे की डोर को खींच लिया और उसका कपडा चरण के सामने गिर गया। जयंती जल्दी से अपने नंगे बदन को छुपाने लगी।
लेकिन चरण की हवस भरी नज़रो ने जयंती के नाज़ुक जिस्म को देख लिया था , अपना लंड दाई माँ से चुसवाते हुए चरण ने जयंती को अपनी तरफ खींचा और उससे चूमने लगा। बस कुछ ही पलो के लिए जयंती हिचकिचाई , लेकिन जब दाई माँ ने जयंती के हाथो में चरण का लंड दिया वह ऐसा मोठा लंड हाथ में लेकर पिघल गई और चरण को चूमने लगी।
दाई माँ अब जयंती के बड़े मुम्मो को चूस रही थी और चरण उसके होठो को। फिर चरण ने जयंती को लेटाया और उसके मुँह में अपना लंड दिया , दाई माँ जयंती की चुत को चाटने लगी। “हम्म… ” करते हुए जयंती मज़े ले रही थी।
जयंती को इस हाल में देख कर सरदार आग बबूला हो उठा और तुरंत ही वहा पहुँच गया। उसने चरण को कीचकर जयंती पर से हटाया और दोनों के बीच अब जयंती को चोदने के लिए झड़प होने लगी। तब इस दुविदा को ख़तम करने के लिए दाई माँ ने एक प्रस्ताव रखा , “लगता है की तुम दोनों का दिल कबीले की रानी पर आ गया है और सरदार ये तो परमपरा है की हम उन लोगो को रोकते नहीं जो अपनी मर्ज़ी से चुदाई करना चाहते है , इसीलिए तुम चरण को रोक नहीं सकते। लेकिन क्युकी तुम इस कबीले के सरदार हो , तुम्हे अपनी मर्ज़ी को आगे बढ़ाने का पूरा मौका दिया जायेगा। मेरा प्रस्ताव है की , तुम दोनों जयंती को चोदो और जो पहले झड़ेंगे वह जयंती को चोदने हक़ गवा देगा। ”
दोनों को ये प्रस्ताव मंजूर था तो दोनों पूरी तरह से जयंती पर टूट पड़े , सरदार ने जयंती की चुत में अपना लंड डाला और चरण अपना लंड चुसवाता रहा। फिर कुछ पल बाद सरदार ने जयंती को अपने गोद में लिया और अपना लंड उसकी गांड में डाला , जयंती ने अपनी गांड में लंड कभी नहीं लिया था। सरदार ने बहुत सारा तेल जयंती के गांड के छेद पर मसला था।
जब लंड अंदर गया तो जयंती कराह उठी , “उफ़ आह आह ह… ”
दुगना मज़ा देने के लिए फिर चरण ने अपना लंड जयंती की चुत में डाला , और दोनों आदमी जयंती को चोदने लगे। जयंती के जीवन में ये सबसे गहरी चुदाई का अनुभव था। “आह आह… ”
ज़ोर ज़ोर से जयंती चीख रही थी और फिर चरण जयंती की चुत के अंदर ही झड़ गया। दूसरी और सरदार बेहद खुश था की अब जयंती बस उसी की थी , सरदार भी जयंती की गांड में झड़ गया।
तीनो पसीना पसीना होगये और फिर सरे कबीले ने एक आवाज़ में सरदार और जयंती की जय जय कार की।
उसके बाद जब चरण अपनी हार पर मायूस था तब दाई माँ उसके पास आई और उससे बोली , नाराज़ क्यों होता है , ये मत भूल की तूने उसकी चुत में अपनी मलाई निकाली है। बच्चा उससे तुजसे होगा , जिसका बच्चा वही रानी का असली हक़दार। अब तुजे बस ९ महीनो तक रुकना है और फिर मंगल सिंह के सरदार वाले दिन ख़तम।
दाई माँ और चरण इस बात पर हस्ते रहे।
इस तरह की और कहानियाँ पाने के लिए nightqueenstories.com पर जाएं।
कमेंट और लाइक करना न भूलें।
मेरी अगली कहानी का शीर्षक है “दो गर्म चुत”
तो आप सब अपना ख्याल रखिएगा। कोविड का सिचुएशन है तो अपना विशेष ख्याल रखिएगा। नमस्कार।
धन्यवाद।
The End.
Where there is a will, there is a way.
You choose peace or war?
Of course dear, PEACE..